कोण्डागाँव। न्यूज़ डेस्क। अपनी अद्भुत प्राकृतिक छटाओं एवं अनूठी आदिम संस्कृति के लिए प्रसिद्ध बस्तर की वादियों में एक ऐसी प्राकृतिक गुफा है, जिसका द्वार साल में केवल एक बार खुलता है। इस साल 18 सितंबर को विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद माता लिंगेश्वरी गुफा मंदिर का द्वार श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोला गया। श्रद्धालु इस द्वार के खुलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
कोण्डागाँव जिले के फरसगांव से बड़ेडोंगर मार्ग पर स्थित ग्राम आलोर से तीन किलोमीटर दूर ग्राम झाटीबन की पहाड़ियों में एक ऐसी गुफा हैं, जहां माता लिंगेश्वरी विराजमान हैं। इस गुफा मंदिर का द्वार साल में एक बार एक ही दिन के लिए बुधवार को खोला गया। लिंगेश्वरी माता के मंदिर का द्वार खोलने की तैयारी सुबह करीब 4 बजे समिति के सदस्य, ग्राम प्रमुख व पुजारी ने की। पूरे रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना करने बाद गुफा मंदिर के मुख्यद्वार पर रखे पत्थरों को हटा कर खोला गया।
गुफा मंदिर का द्वार खोलने के बाद दर्शन व मन्नत के लिए आए हजारों की संख्या में आए श्रद्धालुओं को गुफा के बाहर से माता के दर्शन करने दिया गया। मंदिर समिति, जिला प्रशासन, पुलिस की टीम मंदिर तक पहुंचने में श्रद्धालुओं की मदद कर रहे हैं। पिछले साल की अपेक्षा इस साल दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ी है। श्रद्धालु सुबह से लेकर देर रात तक बारी-बारी से माता के दर्शन कर अपनी मनोकामना की पूर्ति की कामना करते हैं।
गुफा मंदिर में मिले बिल्ली के पैर के निशान
आलोर झाटीबन में प्रति वर्ष भादो महीना की नवमी तिथि के बाद आने वाले प्रथम बुधवार को प्रसिद्ध लिंगाई माता गुफा का द्वार खुलता है। सेवा अर्जी के बाद उसके अंदर रेत में उभरे पदचिन्हों को देखकर पुजारी द्वारा वर्ष भर की भविष्यवाणी करते हैं। समिति के सदस्यों ने कहा कि प्रत्येक वर्ष अलग-अलग जीव-जंतुओं के पदचिन्ह गुफा के अंदर रेत में उभरे रहते हैं। इस वर्ष बिल्ली के पैर के चिन्ह पाए गए हैं, जिसका मतलब है कि इस वर्ष मंदिर के उत्तर दिशा वाले क्षेत्र में भय और वाद-विवाद की स्थिति रहेगी।
संतान की कामना लिए आते हैं श्रद्धालु
संतान की कामना को लेकर श्रद्धालु खीरा लेकर आते हैं, उसे ही माता को चढ़ाया जाता है। तत्पश्चात पुजारी उन्हें प्रसाद स्वरूप खीरे को नाखून से बराबर हिस्सों में देते हैं, जिसे श्रद्धालु ग्रहण करते हैं। संतान की कामना लिए पहुंचे श्रद्धालु बालोद जिला निवासी दुलेन्द्र कुमार साहू और अर्जुनी निवासी पीताम्बर साहू ने बताया कि अन्य लोगों के माध्यम से मंदिर की मान्यता के बारे में पता चला है, जिसके बाद माता के दर्शन करने आये हैं।