रीवा | समशेर सिंह गहरवार | सरकार की जनहितैसी योजनाओं पर अब फंडिंग की कमी का ग्रहण लगता दिख रहा है। मध्य प्रदेश शासन के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से जारी पत्र क्रमांक 3398 दिनांक 21.08.2024 के माध्यम से जिला कलेक्टर रीवा एवं जिला पंचायत सीईओ को लेख किया गया है। की मध्य प्रदेश शासन के पास गंगेव जनपद के हिनौती ग्राम पंचायत में 1300 एकड़ से अधिक भूभाग में बनाए जाने वाले गोवंश वन्य विहार केंद्र गदही के लिए पैसे नहीं बचे । जिसकी वजह से 1300 एकड़ से अधिक भूखंड पर बनाए जाने वाला गौ-अभ्यारण का महत्वाकांक्षी कार्य खटाई में पड़ता नजर आ रहा है।
गौरतलब है कि मामले को लेकर वर्ष 2014-15 से लगातार सरकार का ध्यान आकर्षण किया जाता रहा । जिसके परिणाम स्वरुप अभी हाल ही में लगभग 1300 एकड़ के शासकीय और जंगल से जुड़े हुए भूभाग पर गौवंश वन्य विहार केंद्र अथवा गौ अभ्यारण बनाए जाने हेतु शिलान्यास रीवा के डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला के द्वारा किया गया था।
10 पशु शेड बनाए जाने का प्रस्ताव अब पड़ा खटाई
गौरतलब है की गौवंशों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु पशु शेड बनाए जाने हेतु कार्ययोजना तैयार किया जाना होता है। जिसमें चारागाह वॉटर टैंक बाउंड्री वॉल तार फेंसिंग एवं पशुओं को व्यवस्थित करने के लिए विशेष सुरक्षित पशु शेड बनाए जाने की योजना होती है। इसी दिशा में प्रारंभिक तौर पर 10 पशु शेड बनाए जाने के लिए मनरेगा योजना के तहत प्रस्ताव मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा एवं जिला कलेक्टर के द्वारा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव को भेजा गया था। जिस पर पत्र क्रमांक 3398 दिनांक 21.08.2024 के द्वारा जानकारी मिली है कि अब वह 10 पशु शेड बनाए जाने की परियोजना निरस्त कर दी गई है। इसके पीछे फंडिंग की कमी और साथ में निर्माणाधीन मनरेगा और गौशालाओं के कार्य का बड़ा कारण बताया जा रहा है।
आखिर गौमाताओं के लिए शासन के पास पैसे क्यों नहीं?
सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने आरोप लगाते हुए कहा कि जुबानी जमा खर्च पर चलने वाले मप्र की भाजपा सरकार में अभी हाल ही में ग्वालियर संभाग में कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने लगभग 438 एकड़ भूभाग में भारत की पहली अत्याधुनिक गौ अभ्यारण्य बनाए जाने के लिए एक बार पुनः घोषणा की थी। अब बड़ा सवाल यह है की एक तरफ तो मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री घोषणाएं और शिलान्यास कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ जिन गौ अभ्यारण्य के लिए शिलान्यास तक कर दिया गया है। उनके लिए ही पशु शेड बनाने के लिए शासन के पास पैसे नहीं है। तो आखिर इसका क्या मतलब समझा जाए? जाहिर है शासन जनता को मात्र योजनाओं का लॉलीपॉप दिखाना चाहता है और घोषणाओं के मकड़जाल में फंसाए रखना चाहता है।
लेकिन हकीकत यह है कि पूरे प्रदेश में हर माह 1500 करोड रुपए से अधिक खर्च किए जाने वाली लाडली बहना योजना के आगे दूसरी योजनाओं के लिए शासन के पास पैसे ही नहीं बचे हैं। जाहिर है लाडली बहना योजना के लिए ही शासन को निरंतर ऋण लेना पड़ रहा है । जिससे साफ स्पष्ट है की पूरा का पूरा मध्य प्रदेश अब कर्ज के बोझ तले ही चल रहा है। ऐसे में सपने दिखाने के अलावा न तो किसानों के लिए और न ही गोवंशों के लिए कुछ खास होने वाला है। बहरहाल उक्त पत्र क्रमांक 3398 दिनांक 21.08.24 के माध्यम से अब यह भली-भांति स्पष्ट हो जाना चाहिए की भाजपा की कथनी और करनी में कितना बड़ा अंतर है। अब एक बात तो निश्चित है की इस पत्र ने प्रदेश में लाखों की संख्या में भटकते हुए बेसहारा गोवंशों के लिए सरकार के दरवाजे फिलहाल के लिए बंद कर दिए हैं।