देहरादून | न्यूज़ डेस्क | ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है और ग्लेशियर पर झीलें बन रही है | उत्तराखंड के उच्च हिमालय क्षेत्र में पांच ऐसी झीलें हैं जो बेहद संवेदनशील है | लेकिन इन पांच जिलों में सबसे ज्यादा संवेदनशील और खतरनाक बसुधरा ग्लेशियर झील है, जिसका आकार लगातार बढ़ता जा रहा है |
यह बसुधरा झील उत्तराखंड के चमोली जिले के नीति घाटी में मौजूद है | इसके आसपास पहले छोटी-छोटी झीलें थीं | साल 2001, 2013 और 2017 में इस झील का आकार बढ़ता हुआ देखा गया | ईस्ट कामेट ग्लेशियर के नीचे मौजूद गूगल मैप में देखा जा सकता है कि बसुधरा झील भारत-तिब्बत बॉर्डर पर मौजूद नीति गांव से ऊपर ग्लेशियर के नीचे मौजूद है | साल 2024 में सामने आई तस्वीरों में हैं झील का आकार काफी बड़ा दिखाई दिया | जानकारी के मुताबिक यह झील 30 से 40 मीटर गहरी है |
उत्तराखंड में पांच हाई रिस्क ए कैटेगरी झीलें हैं |
बसुधरा ग्लेशियर झील चमोली जिले के नीति घाटी में मौजूद है |
बसुधरा ग्लेशियर झील ईस्ट कामेट ग्लेशियर के पास 4700 मीटर पर मौजूद है |
मौजूदा समय में झील का आकार 0.50 हैक्टेयर है |
जोखिम और खतरे के लेवल के हिसाब से यह झील ए कैटेगरी के हाई रिस्क में शामिल है |
कैसे बन रहीं खतरनाक झीलें?
पूर्व ग्लेशियोलॉजिस्ट वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल का कहना है कि मौसमी चक्र में हो रहे बदलाव की वजह से झील बन रही है और मौजूदा हालात में यह बेहद खतरनाक हो गई है | उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे छोटी-छोटी झीलों के पास भी एक बड़ी झील बनने लग गई है | दूसरी झीलों का पानी ओवरफ्लो होकर इस बड़ी झील में जाने लगा | एक तरफ सख्त चट्टान और दूसरी तरफ ग्लेशियर की वजह से इसका आकार बढ़ता जा रहा है | हाल ही में इसकी तस्वीर सामने आई, जिसमें यह झील काफी बड़ी और खतरनाक नजर आ रही है |
झीलों में कैसे बदल रहे ग्लेशियर
डॉ डीपी डोभाल का कहना है कि ग्लेशियर पर पहले छोटी-छोटी झीलें बन जाती थीं | लेकिन जैसे-जैसे मौसमी चक्र में बदलाव हो रहा है ऊपरी इलाकों में स्नोफॉल काम हो रहा है | उसका इंपैक्ट सीधा ग्लेशियर पर पढ़ रहा है | क्योंकि ग्लेशियर की बर्फ ज्यादा पिघल रही है उसकी वजह से ग्लेशियर पर झीलें ज्यादा बन रही है | ग्लेशियर झील से पानी बहुत धीरे-धीरे निकलता है हैं और पानी इकट्ठा होने का उसको समय मिल जाता है |
बसुधरा झील सबसे खतरनाक
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ग्लेशियर झीलों के ट्रीटमेंट पर अन्य विभागों के साथ मिलकर काम करने की बात कर रहा है | आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव विनोद सुमन ने कहा कि झील टूटने वाली नहीं है, सभी झीलें सुरक्षित हैं | एक झील पर उनकी टीम ने काम कर लिया है | बाकी चार पर इस साल काम किया जाएगा | usdma के साथ वाडिया संस्थान,IIRS,सीडैक,sdrf, ndrf के लोग टीम में मौजूद रहेंगे | ये लोग उन जगहों पर जाकर स्थलीय निरीक्षण करेंगे और देखेंगे कि कहां इंस्ट्रूमेंट्स लगाए जाने हैं |
झीलें टूटीं तो आएगी तबाही
कार्बन उत्सर्जन की वजह से ही तापमान बढ़ा रहा है और ग्लेशियर पर झीलें बन रही है | इसके अलावा हिमालय के ग्लेशियर में बनने वाली झीलों का ट्रीटमेंट करना बेहद जरूरी है, क्योंकि अगर यह झीलें टूटी तो रैणी,सिक्किम और केदारनाथ जैसी तबाही निचले इलाकों हो सकती है |