रीवा । न्यूज डेस्क । राम महायज्ञ सेवा समिति एवं सनकादिक भक्त मंडल के सेवकों। युग संत तपोनिष्ठ अनंत विभूषित। पूज्य पाद धर्मध्वजा प्रातः स्मरणीय यज्ञ पुरुष। इस कलि काल में परमात्मा के अवतार सनकादिक महाराज ने। सनकादिक अरण्य विश्वविद्यालय परिसर में 7 से 15 दिसंबर तक होने वाले महा भव्य 1008 कुंडीय राम महायज्ञ के राम सेवकों को राम नामी पट्टिका। आशीर्वाद स्वरुप प्रदान करते हुए सभी सनातनियों का आह्वान एवं आमंत्रण देते हुए कहा। राम नाम की महिमा अपरंपार है । राम नाम की महिमा न मिटने पाए , चाहे हम सब मिट जाए। अतः राम नाम की महिमा को अक्षय बनाए रखने हेतु। हम सब को अपना सर्वस्व न्योछावर करना ही होगा। अतः जागो सनातनियों जागो। ब्रह्मांड के सर्वश्रेष्ठ ,सर्वगुण संपन्न दिव्यात्मा धीर वीर गंभीर देवांशिओं जागो। हे नरसिंघों जागो उठो और आओ , जीवन सफल बनाओ सनातन धर्म को विश्व में पुनर्स्थापित करो।तुम्हें तुम्हारा सनातन धर्म आह्वान कर रहा है ।आमंत्रण दे रहा है । उठो जागो और संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म की धर्म ध्वजा प्रतिष्ठापित करो । तुम्हारे अंदर संपूर्ण श्रेष्ठ मानवीय गुणों का भंडार है।
सनातन धर्म संस्कृत की रक्षा हेतु सबको संगठित होना ही पड़ेगा । क्योंकि कल युग में संगठन में शक्ति होती है। जिससे मनोबल बढ़ता है । संगठित परिवार समाज और राष्ट्र कभी भी असफल नहीं होते । संगठन से आपसी आत्मीयता शक्ति प्रेम स्नेह वात्सल्य और सहयोग की भावना विकसित होती है । सनातन का अर्थ है शाश्वत। सदा बना रहने वाला । वैदिक या हिंदू धर्म को इसीलिए सनातन धर्म कहा जाता है ,क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है । मोक्ष की अवधारणा इसी धर्म की देन है। इस धर्म का मूल आधार पूजा जप तप दान सत्य अहिंसा दया क्षमा और यम नियम है।
दुनिया का सबसे प्राचीनतम धर्म है ।सनातन में ॐ को प्रतीक चिन्ह माना गया है। इसमें शिव शक्ति ब्रह्मा विष्णु को समान माना गया है।इसका मूल अर्थ सत्यम शिवम सुंदरम यानी जो सदा के लिए सत्य है शाश्वत है वही सनातन है ।यह सत्य अनादि काल से चला आ रहा है। जिसका कभी अंत नहीं होगा ।ईश्वर आत्मा और मोक्ष परम सत्य हैं ।यही सनातन धर्म है।सनातन धर्म हिंदू धर्म का ही वैकल्पिक नाम है। सनातन नियमों में संपूर्ण ब्रह्मांड समाहित है। सनातन धर्म के जनक स्वयंभू मनु थे। हिंदू धर्म लाखों वर्ष पुराना है । प्रत्येक व्यक्ति जो सिंधु से समुद्र तक फैली भारत भूमि को साधिकार अपनी पितृ भूमि एवं पुण्य भूमि मानता है वह हिंदू है। भगवान महामृत्युंजय की पावन पुनीत धरती सफेद शेरों की जननी ऐतिहासिक रीवा नगरी में जो आज तक नहीं हुआ भूतों न भविष्यति। वह होने जा रहा है।
सनातन धर्म एवं संपूर्ण मानव जाति के उन्नति एवं उत्थान हेतु किया जा रहा है,। इसी महायज्ञ को सफल बनाने हेतु संपूर्ण सनातनियों का आह्वान एवं आमंत्रण है। राम महायज्ञ के माध्यम से महान सनातन सभ्यता संस्कृति की पुनर्स्थापना करने जा रहे हैं । उक्त आशय की जानकारी देते हुये सरपंच संघ अध्यक्ष एवं अन्तर्राष्ट्रीय अधिवक्ता दिवस संघर्ष समिति के अध्यक्ष एडवोकेट राजकुमार सिंह तिवारी ने बताया कि यज्ञ मानव जीवन को सफल बनाने की आधारशिला है ।यज्ञ से संपूर्ण वातावरण पवित्र और देवमय बनता है ।दुख दारिद्र तथा कष्टों से छुटकारा मिलता है । याद रखें जहां से इंसानी शक्ति समाप्त होती है वहीं से परमात्मा की शुरू होती है। आस्थावान होकर धर्म कर्म करने से जबरदस्त आत्म बल का विकास, मानसिक शांति, निरोगी काया, दैहिक ,दैविक,भौतिक तापों से मुक्ती,मनोकामना पूर्ति एवं विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करने की क्षमता प्राप्त होती है। आपके द्वारा किए गए पुण्य कर्म फल आने वाली पीढ़ीयों को प्राप्त होता है एवं पूर्वज संतृप्त होते है।यज्ञ से सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार अनाशक्ति भाव से किए गए संपूर्ण कर्म यज्ञ होते हैं। हे विंध्य भूधरा के महान सपूतों आपका आह्वान एवं आमंत्रण है कि महान सनातन धर्म के पुनर्स्थापना हेतु किए जा रहे इस महायज्ञ को अपना सर्वस्व न्योछावर कर समर्पित कर महा सफल बनाएं। ताकि आपकी यश की धर्म ध्वजा युग युगांतर तक संपूर्ण ब्रह्मांड में लहराती रहे। एवं आने वाली पीढ़ी गौरवान्वित होती रहे । हे नरसिंघो इसी महान सनातन धर्म के रक्षा हेतु परम ब्रह्म परमात्मा अखिल ब्रह्मांड नायक हरि विष्णु ने विभिन्न अवतारों ,प्रभु राम श्री कृष्ण आदि के रुप में अवतरित हुए थे। याद करिए इसी महान सनातन धर्म की रक्षा हेतु हमारे महान पूर्वजों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर अमर हो गए हैं।अतः उठिए जागिए और इस महान पावन पुनीत कर्तव्य को पूरे निष्ठा मनोयोग से एक जुट हो कर पूर्ण करें। हम बड़े परम सौभाग्यशाली हैं परमात्मा की असीम कृपा है कि, सनातन धर्म के उत्थान हेतु सेवा करने का परम सौभाग्य प्राप्त हो रहा है ।
यह हमारे जन्म-जन्मांतरों के पुण्य फल का प्रतिफल है । गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि, जब-जब होई धरम की हानी , बाढ़ही असुर अधम अभिमानी। तब तब धरि प्रभु विविध शरीरा हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।। अर्थात जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, दुष्टों और अभिमानियों का प्रभाव बढ़ने लगता है, तब तब सज्जनों की पीड़ा को हरने के लिए करुणा निधान प्रभु राम काल समय और परिस्थित के अनुसार अलग-अलग रूपों में अवतार लेते हैं। अस्तु हे विंध्य भू धरा के महान सपूतों आपका आह्वान ,आमंत्रण है उठिए जागिये आइए इस महा यज्ञ में सेवा सहयोग कर समस्त पुण्यों का लाभ प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाएं।